एब्सटिन एनामली की चौथी सफल सर्जरी

छत्तीसगढ़ संवाददाता रायपुर, 30 मार्च। अम्बेडकर चिकित्सालय में एब्सटिन एनामली की लगातार चौथी सफल सर्जरी कर 30 वर्षीय महिला मरीज की जान बचाई। इस बीमारी को चिकित्सीय भाषा में कॉम्प्लेक्स कंजेनाइटल हार्ट डिजीज कहा जाता है। ऑपरेशन के दौरान मरीज के हृदय में डैफोडिल नियो नामक उच्च कोटि का बोवाइन टिश्यू वाल्व लगाया गया। ऑपरेशन के बाद मरीज पूर्णत: स्वस्थ है और उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है। विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के अनुसार, ऐसे मरीज लगभग 28 से 30 साल तक ही जिंदा रह पाते हैं। लगभग 13 प्रतिशत मरीज जन्म लेते ही मर जाते हैं। 10 साल की उम्र तक 18 प्रतिशत बच्चे मर जाते हैं एवं लगभग 25 से 30 साल तक लगभग सारे मरीज मर जाते हैं। इस बीमारी का ऑपरेशन बहुत ही जटिल होता है एवं बहुत ही कम संस्थानों में होता है। मरीज के शरीर का ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल 70 से 75 प्रतिशत ही रहता था। मरीज को बार-बार चक्कर आता था । इस बीमारी को कॉम्पलेक्स कंजनाइटल हार्ट डिजीज कहा जाता है जिसमें बचपन में या पैदा होते ही मरीज का शरीर नीला पडऩा प्रारंभ हो जाता है। भिलाई में रहने वाली 30 वर्षीय महिला जब प्रेगनेंट थी तब उसके हाथ पैर में सूजन एवं अत्यधिक सांस फूलने की शिकायत होने लगी। गर्भवती होने के कारण इसको आज से 5 महीना पहले स्त्रीरोग विभाग में भर्ती किया गया एवं वहां पर जांच में पता चला कि इसको एब्सटिन नामक दुर्लभ बीमारी है। फिर उन्होंने मरीज को हार्ट सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू के पास ओपिनियन के लिए भेजा कि प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करना है कि आगे बढ़ाना है। चूंकि मरीज की स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए इस मरीज को सीजेरियन सेक्शन की सलाह दी गई। ऑपरेशन के तीन महीने बाद मरीज को एसीआई के हार्ट, चेस्ट और वैस्कुलर सर्जरी विभाग में भर्ती कराया गया और ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन के बाद मरीज पूर्णत: स्वस्थ है और उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है।

एब्सटिन एनामली की चौथी सफल सर्जरी
छत्तीसगढ़ संवाददाता रायपुर, 30 मार्च। अम्बेडकर चिकित्सालय में एब्सटिन एनामली की लगातार चौथी सफल सर्जरी कर 30 वर्षीय महिला मरीज की जान बचाई। इस बीमारी को चिकित्सीय भाषा में कॉम्प्लेक्स कंजेनाइटल हार्ट डिजीज कहा जाता है। ऑपरेशन के दौरान मरीज के हृदय में डैफोडिल नियो नामक उच्च कोटि का बोवाइन टिश्यू वाल्व लगाया गया। ऑपरेशन के बाद मरीज पूर्णत: स्वस्थ है और उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है। विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के अनुसार, ऐसे मरीज लगभग 28 से 30 साल तक ही जिंदा रह पाते हैं। लगभग 13 प्रतिशत मरीज जन्म लेते ही मर जाते हैं। 10 साल की उम्र तक 18 प्रतिशत बच्चे मर जाते हैं एवं लगभग 25 से 30 साल तक लगभग सारे मरीज मर जाते हैं। इस बीमारी का ऑपरेशन बहुत ही जटिल होता है एवं बहुत ही कम संस्थानों में होता है। मरीज के शरीर का ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल 70 से 75 प्रतिशत ही रहता था। मरीज को बार-बार चक्कर आता था । इस बीमारी को कॉम्पलेक्स कंजनाइटल हार्ट डिजीज कहा जाता है जिसमें बचपन में या पैदा होते ही मरीज का शरीर नीला पडऩा प्रारंभ हो जाता है। भिलाई में रहने वाली 30 वर्षीय महिला जब प्रेगनेंट थी तब उसके हाथ पैर में सूजन एवं अत्यधिक सांस फूलने की शिकायत होने लगी। गर्भवती होने के कारण इसको आज से 5 महीना पहले स्त्रीरोग विभाग में भर्ती किया गया एवं वहां पर जांच में पता चला कि इसको एब्सटिन नामक दुर्लभ बीमारी है। फिर उन्होंने मरीज को हार्ट सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू के पास ओपिनियन के लिए भेजा कि प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करना है कि आगे बढ़ाना है। चूंकि मरीज की स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए इस मरीज को सीजेरियन सेक्शन की सलाह दी गई। ऑपरेशन के तीन महीने बाद मरीज को एसीआई के हार्ट, चेस्ट और वैस्कुलर सर्जरी विभाग में भर्ती कराया गया और ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन के बाद मरीज पूर्णत: स्वस्थ है और उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है।