चुनाव के लिए पार्टियाँ दावेदारों में से बेहतर उम्मीदवार का चयन करने में ही जुटी

भोपाल प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में दोनों ही प्रमुख दलों के एक जैसे...

चुनाव के लिए पार्टियाँ दावेदारों में से बेहतर उम्मीदवार का चयन करने में ही जुटी

भोपाल

प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में दोनों ही प्रमुख दलों के एक जैसे मुद्दों के चलते अब चुनाव उम्मीदवारों पर ही ज्यादा आश्रित होता दिखाई दे रहा है।

हालांकि अभी सिर्फ भाजपा ने ही 39 सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान किया है, जबकि कांग्रेस अपने दावेदारों में से बेहतर उम्मीदवार का चयन करने में ही जुटी है। प्रदेश में दोनों ही दलों को जो माहौल दिखाई दे रहा है, जिसमें दल की जगह पर इस बार उम्मीदवार के चेहरे पर ज्यादा फोकस होता हुआ लग रहा है।

घोषणाओं में लगी होड़ ने बदला चुनावी महौल
इस बार के चुनाव अब अलग होने जा रहे हैं। दोनों ही दलों में जनता के बीच घोषणाएं कर रहे हैं। भाजपा सरकार घोषणाओं पर तेजी से अमल भी कर रही है। भाजपा को देख कर कांग्रेस भी हर घोषणा और सरकार की योजनाओं का तोड़ लेकर चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है। ऐसे में अब उम्मीदवार का चेहरा ही सबसे महत्वपूर्ण होता जा रहा है।

यह बात अब दोनों ही दल समझ चुके हैं, इसलिए इस बार उम्मीदवार चयन को लेकर दोनों ही दल फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। हालांकि इस बार दोनों ही दलों के पास अपने नेताओं के मजबूत चेहरे भी हैं। भाजपा में जहां शिवराज सिंह चौहान खासकर महिलाओं में खासे लोकप्रिय हैं, वहीं कमलनाथ का चेहरा भी लोग मजबूत मान कर चल रहे हैं।

दोनों दलों ने सभी नेताओं को मैदान में उतारा
दोनों ही दलों ने अपने सभी बड़े नेताओं को चुनाव से पहले मैदान में उतार दिया है। भाजपा की जनआशीर्वाद यात्रा में जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अलावा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रहलाद पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते, कैलाश विजयवर्गीय जैसे सात नेता इसमें पूरी ताकत के साथ जुटे हुए हैं।

वहीं कांग्रेस ने जन आक्रोश यात्र के जरिए सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव, अजय सिंह, डॉ. गोविंद सिंह, जीतू पटवारी, कमलेश्वर पटेल जैसे नेताओं को मैदान में उतारा है। दोनों ही दल अपने हर नेता का उपयोग इस चुनाव में कर रहे हैं।

ऐसे होते रहे चेहरे पर चुनाव
कई विधानसभा चुनाव दल या किसी एक नेता की लहर पर लड़े जाते थे। वर्ष 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की एंटी इनकमवैंसी थी, लिहाला उनके खिलाफ जनता में माहौल था, इधर भाजपा की फायर ब्रांड नेता उमा भारती थी। यानि पूरा चुनाव दिग्विजय सिंह के खिलाफ और उमा भारती की छवि पर ही लड़ा गया। नतीजे में कांग्रेस को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा था।